बुधवार, 9 अगस्त 2023

सावन सहज सुहावना ● [ दोहा ]

 345/2023

 

[ सावन, फुहार,झूले, सखी, कजली]

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●©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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       ● सब में एक ●

सावन सहज सुहावना,सजा-साज शृंगार।

सजनी  साजन  से  मिली,  देती  ग्रीवाहार।।

सावन  में  अंकुर   हरे, पहनाते   परिधान।

धरती  शरमाती लगे,महके सुमन  वितान।।


झर-झर झरतीं मेघ से,शीतल शांत फुहार।

कोयल दुबकी झाड़ में,करती नहीं पुकार।।

जब फुहार गिरने लगी, हुआ   देह-रोमांच।

कम्पन जागा देह में,पावस का यह  साँच।।


अमराई  में  पड़  गए,झूले सावन   मास।

पीहर  में  तिय  झूलती,वर्ज न पाती सास।।

झूले बस ये तन नहीं, झूले मन भी  मीत।

मिल हमजोली गा रहीं,कजली का संगीत।।


सखी कहे सखियो चलें,अमराई  की  ओर।

राधा के  सँग   झूलते, कान्हा नंदकिशोर।।

सखी दुखी क्यों हो रही,है मुख मलिन उदास।

भेज  त्वरित  संदेश  तू, बुलवाए  प्रिय  पास।।


कजली के दिन अब कहाँ,गाती नहीं मल्हार।

सावन  सूना  लग   रहा,  सोई कहीं  बहार।।

मोबाइल की मार से, कजली  रही  न शेष।

कहाँ  मल्हारें  जा मरीं,बदल रहीं  निज  वेष।।

           ● एक में सब ●

कजली झूले  भूल   कर,

                      सावन -  भादों     मौन।

सखी न   शांति फुहार में,

                       पाती  दुखिया   भौन।।


●शुभमस्तु !


08.08.2023◆11.30

पतनम मार्तण्डस्य।

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