बुधवार, 23 अगस्त 2023

मन में हो साँवरे ● [ दोहा ]

 368/2023

    

[झकोर, विभोर, चकोर, चितचोर,हिलोर]

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● © शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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      ●  सब में एक  ●

झर-झर-झर  बूँदें झरें,पुरवा चले  झकोर।

बल खातीं  तरु  डालियाँ,मोर मचाते  शोर।।

मन में उठी झकोर-सी,चलें गाँव की  ओर।

हरियाली हर ओर है,सुखद सुहाना  भोर।।


दीर्घावधि उपरांत ही,देख पिता को  पूत।

उर विभोर आनंद में,सीमा सुहृद प्रभूत।।

प्रोषितपतिका से मिला,प्रियतम वर्षों बाद।

मन विभोर परिरंभ  में, गूँजा   अंतर्नाद।।


लगन रहे ऐसी सदा,जैसी चाँद - चकोर।

एक  रहे  आकाश में,एक धरा के  छोर।।

चातक चटुल चकोर से,सीखें करके शोध।

भक्ति सुदृढ़ ऐसी करें,तरु भूतल  न्यग्रोध।।


किया हरण चितचोर ने,मेरा मन सखि आज।

मिला आज वन-राह में,भूल गई   मैं  लाज।।

बतियाँ सुन चितचोर की,मैं भूली  गृहकाज।

एक प्राण दो तन हुए,चार नयन  का   साज।।


ज्यों सरिता कलरव करे,उठती वीचि- हिलोर।

त्यों मन में हो साँवरे,निशि-दिन साँझ-सु -भोर।

तुम हिलोर मम देह में, सुरसरिता के  बीच।

मीन  तैरती  रात-दिन, उर के सदा   नगीच।।


         ●  एक में सब ●

देख पास चितचोर को,

                      उर में उठी हिलोर।

मैं चकोर सु- झकोर बन,

                         होती भाव- विभोर।।


●शुभमस्तु !


23.08.2023◆ 7.45आरोहणम मार्तण्डस्य।


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