गुरुवार, 31 अगस्त 2023

हिंदी का नव मास सितंबर ● [ गीत ]

 388/2023

  

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● ©शब्दकार

● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

माँ की भाषा

मेरी प्यारी

हिंदी का नव मास सितम्बर।


बोल तोतले

बोले रसना 

कानों में रस घोल रही तब।

अम्मा को माँ

पू -पू पय को

समझ रही थी मेरी माँ सब।।


झिंगुला कभी

देह पर होता

कभी धूप में पड़ा दिगंबर।


माँ के जैसी

बोली उसकी 

मीठी और सुहानी मोहक।

ब्रज माधुरी

सहज शब्दों से

सजी -धजी बजती-सी ढोलक।।


कटुता शून्य 

कर्ण रस घोले

 नहीं खड़ी-सी करती खर-खर।


जसुदा मैया

लाड़ लड़ाती

आ जा री निंदिया तू प्यारी।

लाला मेरा

सो जा  सो जा

दूँगी वरना  मीठी     गारी।।


लोरी मीठी

मातु सुनाए 

बिजना झुला-झुला अपने कर।


चौदह की वह

तिथि आए जब

गिटपिट आंगल गपियाते हैं।

हिंदी के वे

बड़े भक्त बन

अख़बारों  में  छप  जाते हैं।।


नेताओं की

तो कहना क्या 

हिंदी -मंत्र जपेंगे हर -हर।


बाबू बैंकर

हिंदीदाँ बन

दीवालों पर सजा पट्टिका।

चैक माँगते 

अंग्रेज़ी में

कंप्यूटर की कार्य तूलिका।।


'शुभम्' डरे अब

हिंदी लिखते

नकली हिंदी प्रेमी घर - घर।


● शुभमस्तु !


31.08.2023◆11.45आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...