332/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
साधन ज्यों-ज्यों बढ़ रहे,हुई साधना न्यून।
तन-मन में आलस बढ़ा,क्षीण शक्ति हो क्यूँ न!
क्षीण शक्ति हो क्यूँ न,जीभ की धारें पैनी।
नरक गमन की ओर, लगाए मनुज नसैनी।।
'शुभम्' ढोंग के खेल,खेलता नर आराधन।
चलें हवाई रेल, बढ़े जब भौतिक साधन।।
-2-
साधन आवागमन के,बढ़ते जाते नित्य।
चार कदम चलता नहीं, पैदल क्या औचित्य।।
पैदल क्या औचित्य, शाक-सब्जी जब लाए।
स्कूटी आरूढ़ , कार बाइक पर जाए।।
'शुभम्'प्रतिष्ठा मान, यही जन के आच्छादन।
दिखा खोखली शान,बढ़े हैं भौतिक साधन।।
-3-
साधन की भरमार है, भर-भर बैग किताब।
लद्दू गर्दभ - सा लदा,विद्या जी की आब।।
विद्या जी की आब, बसें पीले रँग वाली।
टाई, जूते , सूट, सभी उसने बनवा ली।।
'शुभम्' उच्च प्रासाद, भले वे पढ़ते पाठ न।
ए. सी.सज्जित कक्ष, आज के शिक्षा-साधन।।
-4-
साधन सब घर में भरे,टी वी, फ्रिज़ या कार।
ए. सी. सज्जित कक्ष हैं,लाए स्वर्ग उतार।।
लाए स्वर्ग उतार, बना रोगालय पूरा।
घर भर है बीमार , दवाघर नहीं अधूरा।।
'शुभम्'सुखों का भोग,नहीं किंचित अपनापन।
रोग, रोग बस रोग, दे रहे भौतिक साधन।।
-5-
साधन भक्षित साधना, आडंबर भरपूर।
तिलक, माल, चंदन सभी,हस्त कलावा नूर।।
हस्त कलावा नूर, भक्ति का भाव उड़न छू।
चर्बी से हो होम,महकती कैसी ये बू।।
'शुभम्' मूँछ पर ताव,लगाता पी गैया - थन।
कनफोड़ू विस्तार,यंत्र ध्वनि का नव साधन।।
●शुभमस्तु !
01.08.2023◆ 3.00 प०मा०
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