343/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
● ©शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
माँग रहे थे पहले पानी।
कहते अब क्यों बरसा पानी।।
हाय ! मरे हम प्यासे! प्यासे!!
लाओ बदरा हमको पानी।
झेल न पाए कृपा इंद्र की,
ज्यों ही बरसा दो दिन पानी।
सभी तृप्त हैं मनुज ,ढोर ,तरु,
इतना मत बरसाओ पानी।
धरती ,ताल, बाग ,वन डूबे,
यहाँ - वहाँ बस पानी- पानी।
नदियों में अति बाढ़ भयंकर,
निशिदिन बहे पनारे पानी।
उधर सर्प बाहर उठ भागे,
गया बिलों में भारी पानी।
भीगे पंख काग कोकिल के,
गौरैया की चाह न पानी।
अंकुर 'शुभम्' उगे हरियाले,
लता-कुंज में घुटनों पानी।
●शुभमस्तु !
08.08.2023◆1.15प०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें