शनिवार, 26 अगस्त 2023

धन्यवाद प्रज्ञान ● [ दोहा ]

 376/2023

   

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● © शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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पोल    खोलने   के लिए, धन्यवाद   प्रज्ञान।

महबूबा  के  गाल  को, चाँद नहीं  लें  मान।।

पहले    ही    यदि   जानते, काला  गड्ढेदार।

होगा   अपना  चाँद ये,करते क्यों   इतबार।।


बने  चाँद   पर   गर्त   हैं, ऊँचे कहीं   पहाड़।

गहरे   बारह   मील   के, प्रेमी दिए    पछाड़।।

चंद्रयान  जाता   नहीं,खुलता भेद   न   एक।

लैंडर  विक्रम  ने किया,काम बड़ा  ही नेक।।


कभी - कभी  भ्रम में बड़ी, होती  रहतीं भूल।

दिए बदल  प्रज्ञान  ने,पिछले सभी   उसूल।।

महबूबा   के  गाल  को,अब न कहेंगे   चाँद।

बतलाया  ये   यान  ने, गया गगन को   फाँद।।


चमक रही हर चीज को, कह मत सोना मीत।

निकट पहुँच कर देख ले,गाना  प्रेमिल  गीत।।

किया उजाला चाँद पर,तम से था  जो  पूर्ण।

अरबों -अरबों साल से,वहम हुआ अब चूर्ण।।


ढाई  सहस मीटर किलो, लम्बा  पाया   गर्त।

आठ किलोमीटर गहन,तम आच्छादित पर्त।। 

नहीं   उजाला  नाम  को, ताप सैकड़ों  अंश।

नीचे   पाया   है   गया,  करता  पैदा    शंश।।


नए शोध नित- नित करे, भारत का प्रज्ञान। 

धन्य- धन्य लैंडर तुम्हें, बढ़ा हिन्द का मान।।


●शुभमस्तु !


26.08.2023◆5.00आ० मा०

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