रविवार, 6 अगस्त 2023

हलधर को छतरी नहीं ● [ दोहा ]

 333/2023

 

[मेघ,हलधर,हरियाली,छतरी,नाव]

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●© शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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          ● सब में एक ●

सघन मेघ मँडरा रहे,अंबर में    चहुँ  ओर।

देख  छतों  पर नाचते, मदमाते  बहु   मोर।।

प्यासी धरती  जेठ  की ,पीती है   जलबिंदु।

नभ आच्छादित मेघ बहु,छिपा मौन हो इंदु।।


पावस  में  टर-टर करें, दादुर दल   तालाब।

हलधर हर्षित गाँव में,सकें न हिय  में  दाब।।

जीवन-संगिनि तरु तले,प्रातराश रख शीश।

आई हलधर पास में,भला करें   जगदीश।।


पावन पावस मास में,शुभ हरियाली तीज।

आई  है वरदान  को,कृषक बो  रहे  बीज।।

तरु- हरियाली देखकर, हर्षित  होते   नेत्र।

यहाँ  वहाँ  अंकुर  हरे,उगे बाग  वन   क्षेत्र।।


झीनी - झीनी  झर रहीं,बूँदें नभ  चहुँ  ओर।

छतरी थामी हाथ में,दिखे न नभ का छोर।।

छतरी तानी  शीश  पर, बस्ता  लादा  पीठ।

बाला  विद्यालय  चली,लगे न लेश  कुदीठ।।


खेत लबालब हैं  भरे, उमड़ रहा  उर चाव।

बालक   हर्षित  दौड़ते, तैराने को    नाव।।

नाव पुरानी देह की,कब तक   करती पार।

यौवन    बीता जा रहा,जर्जर आयु   सवार।।

    

         ● एक में सब ●

हलधर को छतरी नहीं,

                        हरियाली से    चाव।

मेघ     उमड़ते     देखकर,

                             चला खेत ले   नाव।।


● शुभमस्तु !


02.08.2023◆6.30 आ०मा०

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