386/2023
[कलाई,भाई,रक्षाबंधन,पूर्णिमा,राखी]
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
कलित कलाई कर्म से,करती मनुज महान।
किए बिना सत्कर्म के,बने नहीं पहचान।।
सजा कलावा हाथ में,बनते पंडित लोग।
करते हैं दुष्कर्म वे, बँधा कलाई रोग।।
भाई हो तो राम - सा,भरत लखन-सा मीत।
संपति - भागीदार में,होती हृदय न प्रीत।।
भुजा - सदृश होता नहीं,सोदर यद्यपि एक।
भाई वह होता नहीं,जिसमें नहीं विवेक।।
रक्षाबंधन पर्व को,रूढ़ि न जानें भ्रात।
रक्षा का दायित्व है,निभा सके जो तात।।
गुरु, माँ ,पितु रक्षक सभी,पंच तत्त्व,तरु ,बेल।
रक्षाबंधन कीजिए , कर भाई से मेल।।
वही पूर्णिमा चाँद ये,गिरि गर्तों की भीड़।
तम-आच्छादित है कहीं,कौन बनाए नीड़।।
'विक्रम' सह 'प्रज्ञान' के,करता है नित शोध।
आज पूर्णिमा श्रावणी,करे नित्य नव बोध।।
राखी की लज्जा रखें,जानें मत ये सूत।
प्यार भरा है भगिनि का,दुर्लभ मीत अकूत।।
राखी - पर्व महान है,जहाँ नेह की वृष्टि।
होती भगिनी की महा,उर से उर में सृष्टि।।
● एक में सब ●
आज श्रावणी पूर्णिमा,
रक्षाबंधन- पर्व।
राखी भाई के बँधे,
सु- कलाई सह गर्व।।
●शुभमस्तु !
30.08.2023◆7.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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