377/2023
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
तुम्हारे गाल जैसा नहीं है चाँद।
पहले जहाँ था नहीं है चाँद।।
तुम्हारे गाल चिकने हैं रपटते हम,
सोने - सा चमकता नहीं है चाँद।
फलक के चाँद से उपमा नहीं देंगे,
मुस्कराता फूल - सा नहीं है चाँद।
काला-कलूटा और ऊबड़-खाड़ वह,
अब चकोरों का नहीं है चाँद।
गहन गड्ढे हैं कहीं पर्वत भयंकर,
इश्क के जैसा नहीं है चाँद।
शायरों की झूठ बातें मानना मत,
झूठे तसव्वुर का सगा नहीं है चाँद।
उठ गया है अब यकीं इन शायरों से,
अब 'शुभम्' वैसा नहीं है चाँद।
●शुभमस्तु !
26.08.2023◆6.30आ०मा०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें