शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

आँखों में है चोर ● [ नवगीत ]

 361/2023

 

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

● ©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

मुख पर है 

मुस्कान गुलाबी

आँखों में है चोर।


शहद टपकता

लाल जीभ से

उर में काला रंग।

अवसर की है

सघन प्रतीक्षा

करना है रस -भंग।।

दिल की धड़कन

बता रही चुप

भीतर -भीतर शोर।


काले दिल के

लोग दुग्धवत

धर कर तन पर वेश।

तिलक छाप

माला डाले कुछ

बढ़ा सुगंधित केश।।


बैठ तखत 

उपदेश सुनाते

मन में काम -हिलोर।


रँगिया बाबा 

कान फूँकता

होगा  पुत्र जरूर।

खुश करने की

शर्त हमारी

जन्नत की तू हूर।।


कहना नहीं

किसी से कुछ भी

हिले न अक्षर -कोर।


●शुभमस्तु !


17.08.2023 ◆2.00आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...