351/2023
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● © शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बदल रही है चाल,बिछने लगी बिसात।
नेता मालामाल, कहें दिवस को रात।।
कागा बना मराल, खाता मोतीचूर,
खूब बजाता गाल,दे मराल को मात।
गुर्गा करे प्रचार, बना वीडियो खूब,
यूट्यूबर साभार, बना गधे को तात।
कवि की वाणी मौन, सुनता है अब कौन,
कविता लगे अलौन, हँसगुल्ले दें मात।
फैला चमचावाद, भरे भगौना खीर,
राजनीति का स्वाद, देता है रस सात।
जाय भाड़ में देश, जातिवाद की खाद,
जनता केवल मेष, नोट - वोट संपात।
मंदिर में हैं राम,उर का काम तमाम,
मुख में जपता नाम, होता धर्माघात।
बस कुर्सी ही लक्ष्य, जैसे भी हो प्राप्त,
खाते भक्ष्य-अभक्ष्य, नीच पाद प्रणिपात।
'शुभम्' सूर्य अवसान, अस्ताचल की ओर,
निकल रहे हैं प्रान,घातों की बरसात।
●शुभमस्तु !
12.08.2023◆ 6.45प०मा०
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