384/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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आज कहाँ हैं मेरी मामी।
छिपी कहाँ शरमाकर मामी।।
द्वार भानजे दो - दो आए।
चन्द्रयान पर चढ़कर धाए।।
गति की मानो चला सुनामी।
आज कहाँ हैं मेरी मामी ।।
'विक्रम' सँग 'प्रज्ञान' पधारे।
हाथ तिरंगा लेकर प्यारे।।
भारतमाता के अनुगामी।
आज कहाँ हैं मेरी मामी।।
दोनों दो सप्ताह रुकेंगे।
बढ़ते -चलते नहीं थकेंगे।।
बतला दो हे चंदा स्वामी।
आज कहाँ हैं मेरी मामी।।
दक्षिण ध्रुव पर देख अँधेरा।
कौन करेगा यहाँ बसेरा!
क्यों चिराग-तल में तम बामी।
आज कहाँ हैं मेरी मामी।।
ननदी के घर प्रायः आतीं।
सदा अमावस्या को गुम जातीं
जोड़ी मामा - मामी नामी।
आज कहाँ हैं मेरी मामी।।
ऊपर गरम बहुत फिर ठंडा।
चंदा मामा है बरबंडा।।
भरे नहीं मामी की हामी।
आज कहाँ हैं मेरी मामी।।
'शुभम्' हमें मामी दिखलाएँ।
उनसे मिल बोलें कुछ खाएँ।।
मिलीं न तो होगी बदनामी।
आज कहाँ हैं मेरी मामी।।
● शुभमस्तु !
29.08.2023◆1.45प०मा०
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