रविवार, 6 अगस्त 2023

सार्थकता जीवन की ● [अतुकान्तिका]

 334/2023


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●©शब्दकार

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जिस्म

जिंदगी

जर्रा -जर्रा

जर्जर

ज़रा - ज़रा।


जिंदादिल ही

जिया जिंदगी

जिसने 

ज़ख्म सिया,

जलता एक दिया।


कुत्ते भी

भर लेते

अपने पेट,

मस्त सूकर

कीचड़ में,

नर जीवन

नहीं जुआ।


करता नहीं

जनक जननी की

सेवा ,मान न पूजा,

देशभक्ति गुरु मान

न जिसमें

वह तो ढोर मुआ।


'शुभम्' सार्थक

जीवन कर ले

दुर्लभ मानव देह,

उड़ जाए

जिस क्षण

वह पंक्षी

रिक्त बने 

ये गेह,

हुआ या 

नहीं हुआ!


●शुभमस्तु !


04.08.2023◆3.30आ०मा०

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