339/2023
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●© शब्दकार
● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पीहर आई
नारि नवेली
सावन आया द्वार।
अमराई में
धूम मचातीं
उर में खिलते फूल।
झूला डाला
तरु रसाल पर
रहीं गोरियाँ झूल।।
जब तक झूलें
याद न पी की
नहीं सताए मार।
झूल रहीं दो
एक पटलिका
झोंटा देती एक।
खिल - खिल हँसतीं
पींग बढ़ातीं
तनिक न लेतीं टेक।।
केसर पाटल
रंग शाटिका
लीं हैं तन पर धार।
अमराई में
कोकिल बोले
कुहू - कुहू की टेर।
मोर नाचते
हरी घास पर
प्रिया मोरनी हेर।।
गातीं कजरी
गीत प्यार के
सुंदर नवल मल्हार।
हरियाली भर
विटप नाचते
चिड़ियाँ बोलें बोल।
उधर गीत की
मधु स्वर लहरी
सुधा रही नव घोल।।
दृश्य देख यह
मन मुस्काता
पावस का उपहार।
चिंता क्यों हो
झूलें गाएँ
अपने में हो लीन।
पितृ धाम में
बचपन लौटा
बजा नेह की बीन।।
राधा ललिता
झूलें आओ
शुभदा पारावार।
●शुभमस्तु !
08.08.2023◆3.00 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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