मंगलवार, 8 अगस्त 2023

एक साल में बस दो माह ● [ बालगीत ]

 344/2023

 

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● ©शब्दकार 

● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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एक   साल  में बस दो माह।

करते  सब  पानी  की चाह।।


मधु - माधव से  आता  वर्ष।

होता प्रकृति -  घर  उत्कर्ष।।

नई - नई खुल   जाती  राह।

एक  साल में  बस  दो माह।।


तपते  ज्येष्ठ   और  आषाढ़।

बढ़ती  सबकी तृषा प्रगाढ़।।

निकले मुख से प्यासी आह।

एक साल में  बस  दो माह।।


आ जाते जब   श्रावण भाद्र।

सभी   चाहते   होना   आद्र।।

अंबर  में   घन  का  अवगाह।

एक साल में  बस   दो माह।।


दो  मासों   का जल   भरपूर।

कर देता   गरमी   सब   दूर।।

निकलें खुशियाँ  कहतीं वाह!

एक  साल में  बस दो   माह।।


जल के बिना न चलता काम।

जीवन भी है   उसका  नाम।।

'शुभम्'  धरा की मिटती दाह।

एक  साल में  बस  दो माह।।


●शुभमस्तु !


08.08.2023◆1.45प०मा०

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