शनिवार, 19 अगस्त 2023

जलकुम्भी बनाम छलतुम्बी ● [ व्यंग्य ]

 364/2023 

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● ©व्यंग्यकार 

                 ● डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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नेता किसी खेत में पैदा नहीं होते। वे क्षेत्र में पैदा होते हैं। किसी क्षेत्र में पैदा हो लेते हैं।देश में क्षेत्रों की कोई कमी नहीं है।जैसे समाज सेवा, शिक्षा सेवा,कर्मचारी संघ सेवा,धर्म सेवा,पशु सेवा, पक्षी सेवा,पशु -पक्षी सेवा, देश सेवा, जन सेवा,विश्व सेवा, साहित्य सेवा और सबसे व्यापक और बृहत क्षेत्र है राजीनीति। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें सब समा जाते हैं।समाते ही हैं। जिस लघु क्षेत्र में ये घुस गई ,वहाँ फिर इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं रहता। 

यह तो तालाब के तल पर छाई हुई वह 'जलकुम्भी' है, कि इसका बीज पड़ने के बाद वह क्षेत्र ही समाप्त हो लेता है। कुछ छोटे- छोटे और महत्वाकांक्षी क्षेत्र स्वतः इसमें समाने लगे हैं। किसी भी बीज को अंकुरित होने ,पनपने ,बढ़ने औऱ सविस्तार पाकर फूलने -फलने के लिए उर्वरा भूमि और सबल बीज की आवश्यकता होती है।जिस राजनीति को सबसे व्यापक और सशक्त समझा जाता है ,वह समाज के ऐसे अनुर्वर और कमजोर क्षेत्र में नेता को उपजा देती है कि जो विकास के लिए नितांत और ऊसर होता है। जिस मनुष्य में उन्नतशील जीवाणु होते हैं , वही व्यक्ति आगे आकर उसके विकास की चिंता में दुबला होने लगता है। बस एक नेता उग लेता है। जो आगे चलकर ठीक वैसे ही समाज या क्षेत्र पर छा जाता है ,जैसे गन्दे पानी के तालाब पर जलकुम्भी। बस खरबूजे को देखकर अन्य खरबूजे रंग बदलने लगते हैं औऱ धीरे -धीरे सम्पूर्ण तालाब ही आच्छादित हो जाता है। यही तो जलकुम्भी का चमत्कार है।

 यदि किसी भी क्षेत्र के नेता की प्रमुख विशेषता तथा विशेषज्ञता की बात करें तो तो सिद्ध होता है कि कोई भी नेता अपने को सबसे दिमागदार मानता है और मनवाता भी है । मनवा भी लेता है।शेष सभी कार्यकर्ताओं को वह मात्र देह मानता है। हाथ - पैर ,आँखें - कान या जो भी कार्य करने वाले अंग हैं ,वही सब उसके कार्यकर्ता होते हैं। यद्यपि वह स्वयं अपने को भी कार्यकर्ता ही बतलाता है।कोई - कोई अपने को सेवक या जनसेवक भी कहता है।और कोई - कोई तो स्वयं को चौकीदार कहने से भी नहीं चूकता।चौकीदार अर्थात वाचमैन ,गेटकीपर या पहरेदार आदि - आदि।यह उस नेता की 'महानता' ही है कि अपना मूल्यांकन कमतर और काम - काज बढ़कर करता है। अवसर पड़ने पर उसका श्रेय लेने से भी वह कब चूकने वाला है?उसी से तो चलता विकास का परनाला है। 

 नेता मानता है कि सब कुछ उसके दिमाग के किये कराए का जमूरा है ,वरना बाकी सब कुछ घास -कूड़ा है। वे लोग तो बस गड्ढे खोदने, बैनर टाँगने , दरी बिछाने, कुर्सियाँ लगाने, मंच औऱ शामियाना सजाने के लिए ,दीवारों पर पैम्फलेट और पोस्टर चस्पा करने ,जनता में प्रचार -प्रसार करने भर के लिए हैं। सब कुछ नेता जी के दिमाग का खेल है । तभी तो चल रही इतनी तेज विकास की रेल है। यदि दिमाग है तो बस एक उन्हीं में है। उनका तो पूरा शरीर ही दिमाग़ में तब्दील हो गया है। वह जीती - जागती सचल कंदील हो गया है।वह यदि शीश है तो कार्यकर्ता धड़ मात्र हैं। उनमें जब दिमाग ही नहीं तो वे इसी के पात्र हैं।

 नेता का दिमाग हर आम से कुछ खास ही हुआ करता है। इसलिए वह समाज से ऊपर अपना स्थान मानता है। वह अपने सामने किसी अधिकारी , कर्मचारी,आई. ए. एस., पी. सी .एस., डॉक्टर, प्रोफ़ेसर, इंजीनियर वकील,न्यायाधिकारी, धर्माधिकारी ,पंडा पुजारी को नहीं गिनता। सबसे निज चरण चुम्बन की लालसा में बगबगे वेश में शोभायमान रहना उसकी दिनचर्या का एक प्रमुख अंग है। पता नहीं कब कौन - सा भक्त आकर उसे फ़ूल - मालाओं से लाद दे ,औऱ वह लुंगी - बनियान में ऐंठा हुआ बैठा हो। तब उसकी पोल नहीं खुल - खुल जाएगी ?उसके भक्तगण जिस रूप में देखने के आदी हैं ,उसी रूप में दिखना ही श्रेयष्कर है। 

  जलकुम्भी बाहर से जितना सुंदर हरा -भरा और अच्छादनकारी है।उतना रूप स्वरूप उसका बेडौल और खोखली रचना तारी है। नेता का सच्चा प्रतीक है जलकुम्भी।गुर्गों की सलाह पर बजती है उसकी 'छलतुंबी' । वे ही तो उसकी आँख नाक हैं। मुस्कराते हुए अधरों की लाल -लाल फाँक हैं।वे ही डाकिया वे ही डाक हैं।उनके बिना दिमाग तो बस दही का दही है।कहने वाले ने ये बात कुछ गलत भी नहीं कही है। नेता नहीं चाहता कि गुर्गा नेता बन पाए।वह तो आजीवन उसके समक्ष मुर्गा बन कुड़कूड़ाये। उसे जुलूस में अपने काँधे पर टाँग लाए । ऊपर ही ऊपर आकाश में उसे सबको दिखा लाए। वह उसका अंधा, गूंगा, बहरा धड़ बनकर धड़धड़ाये। तभी तो उसके कलेजे को चैन आए। 

 ● शुभमस्तु ! 

 19.08.2023 ◆ 8.30 आ०मा०

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