387/2023
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●© शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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दो ही धागे
कच्चे यद्यपि
राखी का नेहिल शुचि बंधन।
साध साल से
उर में बाँधी
रक्षाबंधन कब आएगा।
भाई मेरा
हाथों मेरे
राखी कर में बँधवाएगा।।
दहलीज उसी
पर जाकर मैं
कर पाऊँ भ्राता- अभिनंदन।
हम एक उदर
से जाए हैं
जननी वह पिता एक अपने।
सँग -सँग खेले
हैं पले -बढ़े
देखे हैं हमने शुभ सपने।।
मेरा छोटा
वह भाई है
है घर उससे माँ का पावन।
दूँगी उसको
आशीष शुभद
मिष्ठान्न खिलाकर हरषाऊँ।
परसेगा मम
वह चरण युगल
भाई पर सौ-सौ बलि जाऊँ।।
कानों में मैं
भुजरिया लगा
कर दूँगी हरा-भरा तन-मन।
मेरे मन में
कामना यही
प्रभु उसकी लंबी आयु रखे।
वह रहे स्वस्थ
समृद्ध सदा
हर्षित अंतर से सदा दिखे।।
कर्तव्य 'शुभम्'
वह करे पूर्ण
खिल उठे धरा का हर कन- कन।
भारत माता
गौरवशाली
उत्सव प्रिय मेरा देश सदा।
चेतना नई
ऊर्जस्वित हो
फल फूल अन्न धन धान्य मृदा।।
दीवाली शुभ
होली रंगीं
विजयादशमी हैं पर्व प्रमन।
● शुभमस्तु !
30.08.2023◆ 8.15प०मा०
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