385/2023
[समय,पल,क्षण,काल,युग]
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● ©शब्दकार
● डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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● सब में एक ●
समय-समय की बात है,समय-समय का फेर।
शुभद समय आता कभी,बनते लगे न देर।।
समय देख मुख मूँदिए,समय देख मुख खोल।
अक्षर - अक्षर बोलिए,हिए तराजू तोल।।
कठिन परीक्षा की घड़ी,पल-पल का है मोल।
जागरूक रहना सदा,किंचित रहे न झोल।।
पलक झपकते पल बना,आँखों का आचार।
प्रलय पलों का खेल है,रहें धर्म - अनुसार।।
क्षणदा छाई छाँव -सी,भानु हुए जब अस्त।
क्षण-क्षण बढ़ती कालिमा,नभ में तारे व्यस्त।
क्षणिक नहीं क्षण क्षरित हो,करले जीव विचार
क्षण न क्षमा करता कभी,श्रम देता उपहार।।
काल सत्य है नित्य है,वही ईश का रूप।
कवलित करता काल ही,रंक या कि हो भूप।।
पहचाने जो काल को,चले काल अनुरूप।
करता उल्लंघन कभी,गिरता है भव कूप।।
युग- युग से सब जानते,क्षमा न करता कर्म।
जैसा जिसका कर्म हो, वैसा उसका चर्म।।
युग-प्रभाव जाता नहीं,कलयुग का आचार।
दूषित तन ,मन,भावना,जन गण का आधार।।
● एक में सब ●
समय,काल,पल -मोल को,
भूल रहे जन आज।
क्षण क्षणदावत क्षय करे,
कल युग मनुज - समाज।।
● शुभमस्तु !
29.08.2023◆11.00प०मा०
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