384/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चंदन शुभदागार, शीतलता सद गंध का।
संग सुखी संसार, महके तन -मन आपका।।
यद्यपि विष आगार,लिपटे रहें भुजंग भी।
रहे निर्मलाकार, चंदन को व्यापे नहीं।।
प्रसरित परम सुगंध,चंदन चर्चित देह की।
महके तन - मन कंध,करे परस जो हाथ से।।
करता चिंता दूर, चंदन मन को शांति दे।
सदगंधी भरपूर, हरे त्वचा-सूजन सभी।।
भक्त हजारों लाख, चंदन की माला जपें।
बढ़े भक्त की शाख, निकट करे जगदीश के।।
शुचि चंदन भरपूर, औषधीय गुण से भरा।
करे रोग को दूर, दोषों का उपचार कर।।
लाता चंदन नूर,त्वचा - कांति में वृद्धि कर।
दृढ़ता को कर दूर, नहीं वर्ण फीका पड़े।।
चन्दन है उपचार, चिंता और तनाव का।
तन - मन में सुख सार,ध्यान योग की साधना।।
शीतल चंदन तेल, निद्रा में आराम दे।
समझ नहीं ये खेल, आयुर्वेदी ने कहा।।
लें पानी के संग, किंचित चंदन चूर्ण को।
न हो रोग की जंग, फंगल हमला रोक दे।।
हरता सकल तनाव, शीश - वेदना दूर कर।
चंदन श्रेष्ठ प्रभाव, नस - नस को विश्राम दे।।
शुभमस्तु !
31.07.2025●11.45आ०मा०
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