बुधवार, 30 जुलाई 2025

राधा के घनश्याम [ दोहा ]

 380/2025



[संयम,संकेत,नटखट,नीलांबुज,भंगिमा]

  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


               सब में एक

ब्रजबालाओं   को  नहीं, संयम पल को   एक।

कान्हा  से  मिलने चलीं,करतीं जतन    अनेक।।

जीवन  में   संयम नहीं,उपजें मनस    विकार।

पहले   ही   धारण   करें, ज्ञानी  जन सुविचार।।


समझ  लिया  संकेत को,पहुँच गईं उस  कुंज।

ब्रजबालाएँ    गोपियाँ, सघन  पल्लवी   पुंज।।

बुद्धिमान जन  के लिए,  यही उचित संकेत।

पल भर में  समझें  वही, जो करणीय  सुहेत।।


नंदलाल   नटखट  बड़े, नटवर नागर   नेक।

नंदरानी  नित  चाव से, करतीं  तन अभिषेक।।

नटखट   नंदकिशोर   की, लीला अपरंपार।

ब्रजवासी   जानें    नहीं, गोपी  गोप कुमार।।


नीलांबुज  अभिराम  हैं, राधा के घनश्याम।

देख नयन  संतृप्त हों, लगता  नहीं विराम।।

नीलांबुज हरि  की कथा,श्रवणों में  रसधार।

बरसाती   है   नेह की,  रंगों   भरी  फुहार।।


वक्र  भंगिमा श्याम की,देख गोपियाँ   मग्न।

मन में व्यापित नेह की,ललित लाड़ली लग्न।।

भौंह भंगिमा  देखकर, मन  में किया  विचार।

काम नहीं बनना  अभी, संभव   पड़े विकार।।


                   एक में सब

संयम के संकेत  की, ललित भंगिमा  नेक।

नीलांबुज   नटखट बड़े,दिखलाते व्यतिरेक।।


शुभमस्तु !


30.07.2025●12.45 आ०मा० 

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