गुरुवार, 24 जुलाई 2025

आओ मटके में गुड़ फोड़ें [ नवगीत ]

 368/2025


  


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आओ मटके में

गुड़ फोड़ें।


लटके-झटके 

आँख मिचौली 

बहुत जरूरी

राज न जाने

कोई अपना

 रखना दूरी

बहता हुआ

 धार का पानी

उलटा मोड़ें।


रस तो सारा 

अपना ही है 

उसको चूसें

कोई राज

नहीं जाने यों

जन को मूसें

यही राज है

राजनीति है

जन को तोड़ें।


अभिनेता 

नकली नेता है

वह क्या जाने

असली हैं हम

राजनीति के

करके ठानें

बार -बार

जन की माटी को

भरसक गोड़ें।


शुभमस्तु !


24.07.2025● 8.30आ०मा०

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