359/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मेघ मूसलाधार बरसते
सनन -सनन जलधार।
सड़कों पर प्रवाह पानी का
अविरल कल- कल गान
हर्षित हरे पेड़ भू तृण-तृण
करते हुए नहान
वर्षा है ऋतुओं की रानी
मौसम का उपहार।
सावन का यह मास मनोरम
बुझी धरा की प्यास
नीला गगन ढँका मेघों से
जाग उठी है आस
बरस-बरस कर श्याम जलद नव
लुटा रहे मृदु प्यार।
कृषक चले हल-बैल लिए निज
मुदित गा रहे गान
टर्र - टर्र कर रहे भेक दल
छेड़ रहे मधु तान
'शुभम्' देख नदियों में आया
उछल-उछल जल ज्वार।
शुभमस्तु !
22.07.2025●4.45 आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें