363/2025
शूल तलवों में नहीं चुभने दिए
[ नवगीत ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दूब पाँवों के तले बिछती रही
शूल तलवों में नहीं चुभने दिए।
कष्ट पाँवों को न हो
वे सदा निर्बाध ही बढ़ते रहें
पददलित होकर कभी रोई नहीं
पशु चरें विचरण करें चढ़ते रहें
उलझना सीखा नहीं पल को कभी
मखमली गद्दे बिछा उसने दिए।
डाल तोड़ी एक उसको ले गया
थाल में उसने सजाया शुद्ध कर
शंभु-सुत के चरण में वह जा बिछी
संकटों के कंट को अवरुद्ध कर
सहज दूर्वा का समर्पण धन्य है
सौम्यता सुखसार रस तप ने दिए।
जो जिया है दूसरों के वास्ते
वह अमर है हरित बिछली दूब-सा
डूबते का जो सहारा बन गया
ज़िंदगी जीता वही शुभ खूब-सा
आदमी ही आदमी का भोज क्यों
आदमी को लोभ के सपने दिए।
शुभमस्तु !
23.07.2025●8.45 आ०मा०
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