378/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दर्पण ये सच ही कहता है
धरती पर मैं सबसे सुंदर।
मेरी नाक सभी से ऊँची
नखशिख से मैं परी मेनका
हिरनी जैसी कटि है पतली
कहना क्या है चक्षु शेन का
मेरे एक अश्रु से झुकते
धरा धाम के प्रबल पुरंदर।
बिना ईंट दीवार बना दूँ
छत के बिना बना दूँ घर मैं
घरवाली कहती है दुनिया
तुझे घुमा दूँ मैं दर -दर में
दो टाँगों पर मर्द नाचते
उछल-कूद करता ज्यों बंदर।
तुच्छ इशारे में जादू की
छड़ी घुमाना आता मुझको
नयन कोर से बंदी कर लूँ
कहता तू पौरुष है जिसको
कुशल इसी में रहना बाहर
और रहूँ मैं घर के अंदर।
शुभमस्तु !
28072025●11.00आ०मा०
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