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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
करना है हर्षित उन्हें, मात-पिता गुरु श्रेष्ठ।
गुण वय में जो हैं बड़े, किसी अर्थ में ज्येष्ठ।।
किसी अर्थ में ज्येष्ठ,आचरण करने ऐसे।
मिले न किंचित कष्ट,खिले फुलबगिया जैसे।।
'शुभम्' न हो अपमान, कष्ट तन-मन के हरना।।
देना हर्ष अपार, सदा सुविचारित करना।।
-2-
वाणी ऐसी बोलिए, वचनों में रस घोल।
हर्षित हो जनगण सभी, भार शब्द का तोल।।
भार शब्द का तोल, नहीं कुछ ऐसा कहना।
लगे स्वयं ही भार, पड़े फिर उलटा सहना।।
'शुभम्' खिलें उर-फूल, अमियवत हो कल्याणी।
रहे सदा अनुकूल, वही बोलें हम वाणी।।
-3-
करते संतति-कर्म ही, हर्षित मन को मित्र।
सबसे उत्तम है यहाँ, उनका चारु चरित्र।।
उनका चारु चरित्र, जगत में नाम कमाए।
चर्चा हो जिस ओर , इत्र महका ही जाए।।
'शुभम्' करें वे काम,कुयश जो किंचित हरते।
जीवन में विश्राम, वही हर्षित हो करते।।
-4-
चाहत सबकी एक ही, अपनों से हो प्यार।
हर्षित वे मन में सभी, भले जगत से रार।।
भले जगत से रार, बैर जन डटकर ठाने।
उसे न भाता प्यार, नहीं कहने से माने।।
'शुभम्' केंद्र के बिंदु, निजी संपति दे राहत।
करे अन्य से बैर, नहीं शुभता की चाहत।।
-5-
आई है ऋतु शीत की, मन हर्षित है शांत।
विदा हुई बरसात से, नमी सघन उद्भ्रांत।।
नमी सघन उद्भ्रांत, जीव जन चेतन सारे।
मन में हैं उत्फुल्ल, नदी के विमल किनारे ।।
'शुभम्' नहीं शैवाल, नहीं उलझी - सी काई।
पड़े गुलाबी ठंड, शीत ऋतु हर्षक आई।।
शुभमस्तु !
24.10.2025●2.15 प०मा०
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