637/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
छोड़ आदमियत
आज आदमी
करता फिरे शिकार।
मिले कहीं जो
एक आदमी
सोचे मिला शिकार
कैसे उसका
भोग लगाए
मन में जगे विकार
मरे हृदय के भाव
मनुज के
सूखे सड़े विचार।
कर लेना
विश्वास श्वान का
मनुज नहीं इस योग्य
बैठा है
शैतान बुद्धि में
मनुज मात्र उपभोग्य
जीत गया
हिंसक पशुओं से
गया मनुज से हार।
प्रेम दया
ग्रंथों की बातें
फैला हिंसाचार
नहीं चाहिए
उसे एकता
खंडन खोले द्वार
मानव ही
मानव को ग्रसता
करके अत्याचार।
शुभमस्तु !
23.10.2025●1.30 प०मा०
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