636/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
रोकने को रास्ता
कितने खड़े हैं !
बिके बकरी
वे बताएँ श्वान उसको
लोभ का आदेश
देखें जीभ-रस को
पारखी
हर राह को रोके अड़े हैं।
चार ठग चंडाल का
खेला यहाँ है
टंगड़ी अपनी अड़ाने
का जहाँ है
चित्त को पट वे करें
ध्वज -से गड़े हैं।
सुन सभी की बात
पर करना वही है
जो कहे निज ज्ञान
वह होता सही है
बहुत मुख हैं
तर्क के अंधड़े हैं।
शुभमस्तु !
23.10.2025 ●12.15प०मा०
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