शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

रोकने को रास्ता [ नवगीत ]

 636/2025


           


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रोकने को रास्ता

कितने खड़े हैं !


बिके बकरी

वे बताएँ श्वान उसको

लोभ का आदेश

देखें  जीभ-रस को

पारखी 

हर राह को रोके अड़े हैं।


चार ठग चंडाल का

खेला यहाँ है

टंगड़ी अपनी अड़ाने

का जहाँ है

चित्त को पट वे करें

ध्वज -से गड़े हैं।


सुन सभी की बात

पर करना वही है

जो कहे निज ज्ञान

वह होता सही है

बहुत मुख हैं

तर्क के  अंधड़े हैं।


शुभमस्तु !


23.10.2025 ●12.15प०मा०

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