मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

सो रहा है देश [ नवगीत ]

 631/2025

           

            

© शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सो   रहा है  देश

करो मत क्लेश

इसे मत जगाना।


कोई  भी  आ  जाए

आकर वह बस जाए

मनाही नहीं है

भले देश लूटे

मारे और कूटे

सुनवाई नहीं है

इन्हें अतिथि मानो

देवता ही जानो

इन्हें मत भगाना।


संस्कृति ये हमारी

प्राणों से भी प्यारी

सहते हैं  चांटे

इस गाल पर

या उस गाल पर 

पड़ें जो घुमाके

बदले में उनको

छूना न पल को

नहीं  है डराना।


हम सब उदारवादी

दर्द सहने के आदी 

मिटने को राजी

बाहरी एक पिल्ला

भले   क्रूर  ढिल्ला

सौ फीसद पाजी

दबा   लेना  खड़ी दुम

करना नहीं  कुन कुम

फिर मत उठाना।


शुभमस्तु !


20.10.2025●5.15 प०मा०

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