मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

सच-सच कहते शब्द शब्दशः [ नवगीत ]

 625/2025



©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सच- सच कहते

शब्द शब्दशः 

झुठलाएँ क्यों तथ्य !


दोनों आँखें

दिल का दर्पण

खुशियाँ या कि विषाद

अनबोले

सच कह देती हैं

किंचित करें न नाद

दिल में हो

जब पीर मर्म की

उसे न भाए पथ्य।


शब्दों में 

बहता है जीवन

लगते हैं जड़ जीव

कविता में

भर देते जीवन

सुदृढ़ जिनकी नींव

कह देते

सब खोल-खोल कर

छिपा हुआ जो कथ्य।


सहज नहीं है

भेद छिपाना 

सृजन नहीं है व्यर्थ

ईश्वर की 

प्रतिकृति है इनमें

समझ सकें जो अर्थ

सदा चाहते

शब्दकोष के

शब्द सबलतम रथ्य।


शुभमस्तु !


16.10.2025●12.30 प०मा०

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