627/2025
समांत : आली
पदांत : अपदांत
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन :शून्य
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
फूट रही प्राची में लाली।
रवि की महिमा बड़ी निराली।।
आया पाँच दिवस का उत्सव।
ज्योति पर्व यह शुभद दिवाली।।
लाई रात अमावस्या की।
भरी सितारों से नभ-थाली।।
नहीं बुभुक्षित सोए कोई।
न हों किसी की रातें काली।।
कलकल छलछल बहती यमुना।
ब्रज में रास रचें वनमाली।।
गोप-गोपियाँ निकले घर से।
चहक उठी खग दल से डाली।।
'शुभम्' मिटाएँ मन के तम भ्रम।
बिना ज्योति घर रहे न खाली।।
शुभमस्तु !
20.10.2025●5.00आरोहणम मार्तण्डस्य।
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