मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

देह के भीतर कब्रिस्तान [ अतुकांतिका ]

 624/2025

     

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जिनके उदर

श्मशान शवों के

वीरान हैं वे

आरोग्य से।


अपनी एक अँगुली

काट कर देख

दर्द तो होता होगा

अपनी सोच को

विस्तार देकर देख

उतार दे

ये बनावटी चोगा।


मार कर खाना

अथवा मरा हुआ खाना

ये दोष किस पर जाना ?

माँस से माँस का स्वाद

वाह रे !आदमी की औलाद?


कर्म का बीज

कभी न कभी उगता है

आज जो तू

स्वाद ले लेकर चुगता है

वही तो जीवन में

कभी न कभी

फलता है।


आदमी की देह में

हिंस्र ढोर की संतान

देह के भीतर कब्रिस्तान

वाह रे! धर्म धुरंधर इंसान ?

तू आदमी है या शैतान?


शुभमस्तु !


16.10.2025●6.45आ०मा०

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