623/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
देते तन - आरोग्य, धनवन्तरि भगवान ही।
जो प्रभु के संभोग्य, आओ सब पूजें उन्हें।।
मिलें सकल सुख धाम,तन में यदि आरोग्य है।
सीताराम ललाम, वह प्रयाग कैलाश भी।।
जहाँ नहीं आरोग्य, निर्धन हैं मानव सभी।
तन-मन के उपभोग्य,सुलभ नहीं साधन उसे।।
होता सहज सुवास,जिस घर में आरोग्य का।
किसे न आए रास, वहीं स्वर्ग की भूमि है।।
मिलें सकल भंडार,अमृत पी आरोग्य का।
रहना सहज उदार, व्यसनों को दे त्याग तू।।
धन कोई भी मित्र, बड़ा नहीं आरोग्य से।
सबसे श्रेष्ठ चरित्र, सोना - चाँदी धूल है।।
उत्तम एक उपाय, सात्विकता आरोग्य का।
विरुज न रहती काय, करता माँसाहार जो।।
स्वर्ण रजत सब व्यर्थ,धन तन का आरोग्य है।
नहीं गात को अर्थ,बिना स्वस्थ मन के मिले।।
उसे कहाँ आरोग्य, प्रकृति से जो दूर है।
जो न मनुज के योग्य,पराधीन रहना उसे।।
ए.सी. से रह दूर, चलो पेड़ की छाँव में।
सुखद शांति भरपूर,वहीं धाम आरोग्य का।।
रखें न मित्रो ध्यान,एक दिवस आरोग्य का।
जीवन बने महान, जागरूक रहना सदा।
शुभमस्तु !
16.10.2025●5.15 आ०मा०
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