122/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आए गोपी-ग्वाल, बजी श्याम की बाँसुरी।
करती हुई धमाल, गाय रँभाने लग गईं।।
नाचें गोपी ग्वाल, जीव-जंतु सब मुग्ध हैं।
देते तरुवर ताल, हरे बाँस की बाँसुरी।।
हरी बाँसुरी नित्य,बजती जब घनश्याम की।
रुक जाते आदित्य, गौ माताएँ नाचतीं।।
जग जाते मम भाग, जो होती मैं बाँसुरी।
सोया सुघर सुहाग , सौतन मेरी बन गई।।
हे कान्हा बरजोर, पहले मेरी बात सुन।
करे कान में शोर, दूँगी तुझको बाँसुरी।।
चले आ रहे श्याम, कटि में खोंसी बाँसुरी।
जपते राधा नाम, आज अनमने-से लगे।।
राधा ने जब आज,छिपा चुनरिया में रखी।
बिगड़ा है सुर-साज, हरी बाँसुरी श्याम की।।
सुनी बाँसुरी टेर,छोड़ दिए गृह-काज सब।
करें न किंचित देर,विह्वल हैं अति गोपियाँ।।
मधुर बाँसुरी टेर, मंत्रमुग्ध हो सुन रहे।
तनिक न करें अबेर,जीव जंतु मृग तरु सभी।।
सुनें बाँसुरी नाद, नारद वीणा रोक कर।
दूर करे अवसाद, तन्मय हो तल्लीन हैं।।
जहाँ बाँसुरी नाद, धन्य -धन्य ब्रजधाम है।
शेष न रहे प्रमाद, बाँधे अपने मंत्र में।।
शुभमस्तु!
27.02.2025●5.30आ०मा०
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