गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

तीरथराज प्रयाग [सोरठा]

 064/2025

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


तीरथराज  प्रयाग, गंगा यमुना सरस्वती।

जाग सके तो जाग,मात-पिता के चरण में।।

यमुना जी ही  भक्ति, गंगा जी ही ज्ञान हैं।

यह प्रयाग की शक्ति,सरस्वती ही कर्म हैं।।


संगम में  अवगाह,सबकी  एकल चाह  है।

सुरसरि भरे प्रवाह,फल है कुंभ प्रयाग का।।

नेह भक्ति का मेल,मानव की समता जहाँ।

रही एकता  खेल, है  प्रयाग  के कुंभ  में।।


अनुपम मानव भक्ति,प्रेम दया ममता यहाँ।

जीवन से  अनुरक्ति,पावन कुंभ प्रयाग  में।।

सकल विविधता रंग,सहिष्णुता का संग है।

देख जगत  है दंग, पावन भूमि प्रयाग  की।।


ज्ञान   भक्ति  सह  कर्म, मानवीय सद्धर्म हैं।

संस्कृतिकता  मर्म, उमड़े  कुंभ प्रयाग   में।।

मजहब यहाँ अनेक, भारत अपना एक  है।

सदा  एकता  टेक,  है  प्रयाग  ज्यों संतरा।।


आराधन     समवेत,  सेवा   संगति साधना।

ज्ञान भक्ति  का  हेत, अपने   कुंभ प्रयाग में।।

जीवन है  अनमोल,हृदय  द्वार को खोलिए।

तन   प्रयाग  में तोल,  हर-हर  गंगे बोलिए।।


भाषा विविध प्रकार,भिन्न भले सब जातियाँ।

समता   का   संचार, पावन  कुंभ प्रयाग  में।।

शुभमस्तु !


05.02.2025●11.15प०मा०

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