523/2023
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● © शब्दकार
● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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टिका हुआ संसार, एकमात्र विश्वास पर ।
होता बंटाधार, मर जाए विश्वास यदि।।
मत सबका विश्वास,दुनिया में करना कभी।
कर मत सबसे आस,ठगी दगाबाजी भरी।।
फिरते हैं ठग चोर, घोंट गला विश्वास का।
चोर मचाए शोर,नीयत में अति खोट है।।
उचित नहीं वह मित्र,विष भरता विश्वास में।
देखें मात्र चरित्र,चित्र नहीं मुख भी नहीं।।
मात्र एक विश्वास, पति-पत्नी के बीच में।
वरना जग - उपहास,सुदृढ़ नींव बनता सदा।।
सुदृढ़ होती डोर, माला में विश्वास की।
माला नित कमजोर, निर्बल डोरी से रहे।।
यदि हो दृढ़ विश्वास, मित्र-मित्र संबंध में।
जले सूखती घास,पल भर को यदि भंग हो।।
दृढ़ विश्वास अपार, शिक्षक-सिख में चाहिए।
करता सिख - उद्धार, पाते हैं सम्मान गुरु।।
आपस का विश्वास, एक बार यदि भंग हो।
करती विपदा ग्रास, जोड़े से जुड़ती नहीं।।
सहता पंकज भार, भौंरे का विश्वास कर।
नहीं मानता हार, मधुरस उसको सौंपता।।
जहाँ न हो विश्वास, 'शुभम्'न रिश्ता जोड़िए।
दुख में अशुभ हुलास,फाँस न मिश्री में भली।।
●शुभमस्तु !
07.12.2023●12.45प०मा०
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