शुक्रवार, 27 जून 2025

गरिमा [सोरठा]

 279/ 2025

            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मानव देव समान,गरिमा है यदि रूप की।

लात चलाए तान, गर्दभ  गोरे  चाम का।।

करके खोटे काम,मत गरिमा को लाँघिये।

जग में हो बदनाम,जो सूरज पर थूकता।।


गरिमा  सीमा  नेक,  गरिमा का ही मान   है।

रखना पूर्ण विवेक,गरिमा को मत त्यागिए।।

कर्मों  से  ही  साध, कर्मों   से गरिमा  गिरे।

करना  कर्म  अबाध, कर्म   श्रेष्ठ  है विश्व में।।


गरिमा   का सब खेल,सोनम या मुस्कान  हो।

उन्हें  पतित  कर जेल,कर्मों ने पहुँचा  दिया।।

रखना है नित ध्यान, मात-पिता की नाक का।

तानें  विशद  वितान,गरिमा  घटे  न लेश  भी।।


चमके  जग  में नाम,श्रेष्ठ  कर्म गरिमा   बनें।

करें  न  खोटे   काम, सदा  बनाए ही   रखें।।

गरिमा  का रख ध्यान,सैनिक सीमा पर  डटे।

छोड़ें   तीर-कमान,  अरि  आए जो पास में।।


गरिमा    की  मर्याद, धर्म  सनातन ने   रखी।

यद्यपि   हैं फौलाद,  हिंसक पर हिंसा   नहीं।।

रखी न  गरिमा लेश,नाक नहीं अपनी  बची।

बदल -बदल कर वेश,मिले न मानव रूप में।।


सर्वोपरि  शुभ  काम,गरिमा  सदा स्वदेश की।

करके  नमन   प्रणाम,  सदा बनाए ही   रखें।।



शुभमस्तु !


26.06.2025●7.30 आ०मा०

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