बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

भ्रमर [ चौपाई ]

 057/2025

                       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


ऋतु   वसंत  की  अति   मनभाई।

हुई  शीत  की     सुखद    विदाई।।

फूल - फूल    पर    भ्रमर    झूमते।

नवल   अधखिली   कली    चूमते।।


गेंदा     खिले     महकते     पाटल।

भ्रमर दलों    के    उमड़े    बादल।।

सरसों   मटर   खेत    में      नाचे।

खोल  ग्रन्थ   ज्यों   मन्मथ   बाँचे।।


बैठा  भ्रमर    कमल   के     ऊपर।

मद  में  झूमा    नवरस     छू कर।।

रंग  -  बिरंगीं     तितली       आईं।

नव सुगंध     कलियाँ      मुस्काईं।।


मोर    नाचते      छत    के    ऊपर।

भ्रमर  करें    क्रीड़ा    नित   भूपर।।

तरुणी- तरुण    कामरस       राँचे।

बरगद  पीपल     भरें       कुलाँचे।।


ऋतुओं  के      राजा     मधु  आए।

पेड़ों ने    नव      साज      सजाए।।

भ्रमरी - भ्रमर   गा      रहे     लोरी।

चली   गुजरिया   धरे        कमोरी।।


फागुन  आया      खेलें       होली।

लगा   भाल पर    चंदन -   रोली।।

कोयल ने  नव      राग     सुनाया।

अमराई      में     खेल     रचाया।।


'शुभम्'  भ्रमर की     झूमे   टोली।

देवर-भाभी        खेलें       होली।।

जीजाजी    से      साली     बोली।

करो  न  हमसे  यों  न    ठिठोली।।


शुभमस्तु !


02.02.2025●8.30प०मा०

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