शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025

दसमुख [ कुंडलिया ]

 604/2025


       

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

त्रेता युग में विप्र था,दसमुख  जिसका नाम।

ज्ञानवान  शिवभक्त  भी,धरती पर था नाम।।

धरती  पर था  नाम, कर्म कुछ उसका ऐसा।

नीति  धर्म  प्रतिकूल,न  करता मानव वैसा।।

'शुभम्' हुआ बदनाम,जदपि वह धर्म प्रणेता।

हरी   राम  की सीय,  बना  दानव  युग त्रेता।।


                         -2-

खोटे    मानव    कर्म हों, होता पतन अवश्य।

जैसे  दसमुख  विप्र  का,हुआ  नाम अस्पृश्य।।

हुआ नाम  अस्पृश्य,  नहीं  रखते जन  रावण।

मानवता   के   नाम,हुआ हो  ज्यों कोई व्रण।।

'शुभम्' लिया  हठ  ठान,जले स्वर्णिम परकोटे।

उचित   यही   है तथ्य,कर्म क्यों करना खोटे।।


                         -3-

विजयादशमी    पर्व    की,  पावन है यह रीत।

दसमुख तमस प्रतीक है,राम विजय की प्रीत।।

राम   विजय    की प्रीत, युगों से चलती आई।

दसकंधर    का  नाश,  सदा   को  हुई विदाई।।

'शुभम्'  धरा    से एक,शुभद कन्या जो जनमी।

हरण  हुआ  वनवास, मुक्ति   में विजयादशमी।।


                         -4-

माता      जिसकी     कैकसी, एक दानवी नाम।

पिता    विश्रवा  एक  ऋषि,हुआ  पुत्र बदनाम।।

हुआ    पुत्र     बदनाम,  हरण  कर सीता लाया।

अहंकार    में    चूर, क्रूर    दसमुख कहलाया।।

'शुभम्'  कर्म  फल व्यक्ति,इसी जीवन में पाता।

हों   यदि   पिता  सुशील,  भद्र  भी  होवे माता।।


                         -5-

दसमुख    एक   प्रतीक  है,अहंकार का नाम।

रावण    दानव  एक  था,  श्रीलंका   में  धाम।।

श्रीलंका   में  धाम, भक्ति शिवजी की करता।

अहंकार  में    लीन,  कर्म   से   जीता -मरता।।

'शुभम्' सदा मतिमंद,किया करते उलटा रुख।

दुष्कर्मों   का बंध,   बना   रावण   वह दसमुख।।

शुभमस्तु !


02.10.2025● 10.30 प०मा०

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राम को आराम कब है! [ नवगीत ]

 603/2025


  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


इन रावणों के

बीच में 

एक राम को आराम कब है!


भ्रष्ट नेता

त्रस्त जनता

अँधियाँ  उड़ते  बगूले

चाहिए 

आधा कमीशन

क्यों न महँगाई वसूले

ओढ़े हुए है

पीत चीवर

प्राण रक्षक मात्र रब है।


खोलता 

अपनी जुबाँ जो

बंद  अब गुर्गे करेंगे

दीवार के पीछे

खड़े जो

घाव शब्दों से भरेंगे

धृष्टता से

बहुल सारा 

देश पूरा एक हब है।


कह रहे हैं

राम वे ही

देश के रावण रँगीले

जय विजय का 

पर्व है ये

दश हरा सब रंग ढीले

हर ओर है

अभिनय अनौखा

जल रही काँचन्य दव है।


शुभमस्तु !


02.10.2025●11.15 आ०मा०

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गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

विजयदशमी का संदेश! [ अतुकांतिका ]

 602/2025





©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जनता पर

नेताओं की

विजय हो रही है!

आप ही बताओ

सत्य किधर है ? 

इधर या उधर ?


सस्ताई के सिर

मँहगाई 

चढ़ रही है,

आप ही बताओ

बुराई 

इधर है या उधर?


भले जन पर

अत्याचारी हावी है

क्या कभी सोचा है

अच्छाई किधर है

इधर या उधर?


नारी पर 

दुष्कर्मी अत्याचार करें,

स्वतंत्र घूमें

व्यभिचार भरें,

बता दो आप ही

उचिताई 

इधर है या उधर ?


क्या यही

विजयदशमी की

गरिमा और गुरुत्व है !

असत्य पर सत्य की

बुराई पर अच्छाई की

विजय का औचित्य है?


वाह रे मेरे महान देश

क्या यही है

विजयदशमी का सुसंदेश?

जहाँ नारी  की अस्मिता बची

न बची निरीह जनता,

भ्रष्ट आचरण का साम्राज्य

सर्वत्र छाए हुए गुंडा नेता।


रावण खुलेआम 

घूम रहे हैं ,

और राम ढूंढ़े से भी

नहीं मिलते !

क्या इसी का नाम

विजयदशमी है ?

नाटकों से रावण नहीं

जला करते !


शुभमस्तु !


02.10.2025●9.15 आ०मा०

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विस्तार [ सोरठा ]

 601/2025


     


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अनथक    करें  विकास,जीवन को विस्तार  दे।

बिखरे विमल  उजास,सुमन खिलें जीवन  फले।।

अंड     पिंड   ब्रह्मांड,   अंबर  के  विस्तार  में।

सूरज  सोम   अखंड, सबका  नित्य सुवास   है।।


एक   सफल विस्तार,  संतति ही परिवार   का।

जीवन     में   अनिवार,  पढ़ें-लिखें   आगे बढ़ें।।

सागर    अतल   अपार,नदियों   का विस्तार   है।

गंगा-यमुना   धार,  निशि -दिन  ही   बहती  रहें।।


होता     सदा     विकास,  शिक्षा के विस्तार  से।

प्रसरित  दिव्य  उजास, देश मनुज -जीवन  बढ़े।।

फूल   और  फल बीज, कलियों का विस्तार  है।

अद्भुत   अनुपम   चीज,   वंश-बेल  बढ़ती   रहे।।


होता   राष्ट्र - विकास,  सड़कों के विस्तार   से।

मिटे   सकल   संत्रास,समय  बचे गति भी   बढ़े।। 

जानें   सकल   सुजान,   महिमा है विस्तार की।

मानव   बने   महान,  गौरव   गरिमा -वृद्धि  हो।।


घटता    है    परिवार,  किया नहीं विस्तार जो।

अकथनीय   सुख -सार, शिक्षा  अतुल प्रकाश है।।

चिंतन      बने    महान,करें सोच - विस्तार   तो।

करें   खोल   उर   दान,छोड़े   लघुता बुद्धि   की।।


चिंतन     यही   महान,  वसुधा  ही परिवार   है।

तनता जगत -वितान,जन -जन का विस्तार ये।।


शुभमस्तु !


02.10.2025 ●8.00आ०मा०

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पैसे के रथ पर [ नवगीत ]

 600/2025


           

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गोल - गोल 

पैसे के रथ पर

चलता है संसार।


गोल -गोल ही

पहिए उसके

गुम्बद   गोल-मटोल

बैठा रथ पर

नहीं जानता

धन-रथ का क्या मोल

उदय-अस्त हो

सूरज उससे

छलता है संसार।


दो रोटी की

खातिर करता

कितने पाप जघन्य

मानवता को

रखे ताक पर

बना हुआ नर वन्य

देख - देख 

अन्यों का पैसा

जलता है संसार।


रिश्ते-नाते

धर्म -कर्म में

पैसे का ही काम

ब्याह-बनिज

श्मशान घाट तक

सबका पैसा राम

आदि मध्य 

 सबमें ही पैसा

ढलता भी संसार।


शुभमस्तु !

01.10.2025● 9.30 आ०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...