[निष्फल,कविता,सारस्वत,प्रदर्शन, मकरंद]
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✍️ शब्दकार ©
🎻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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🪴 सब में एक 🪴
कर्म कभी होता नहीं,निष्फल जानें मीत।
जैसे जिसके कर्म हैं, वैसे उसके गीत।।
मात पिता गुरु का कभी,करे नहीं जो मान।
निष्फल जीवन है वही,झूठी उसकी शान।।
कविता मेरी प्राण है,कविता जीवन-राग।
माँ वाणी की सत कृपा,सदा 'शुभम'सौ भाग।
रग-रग में मेरी बसी,कविता की झनकार।
यही कामना मात से, करूँ जगत -उद्धार।।
सारस्वत प्रतिभा सदा, मानवता -आबद्ध।
यथाशक्य कल्याण कर,करे मनुज मन शुद्ध।
सारस्वत सरिता बहे,कवि-मुख से अविराम
गूँजे बनकर रागिनी, करता 'शुभम' प्रणाम।।
अहं प्रदर्शन नित करे,रहता मौन विनीत।
देखें रावण राम को,अहं विनय की रीत।।
मस्त प्रदर्शन में सभी, राजनीति के धीर।
ताल परस्पर ठोंकते, छोड़ विषैले तीर।।
कहता भौंरा फूल से,पीना तव मकरंद ।
हानि नहीं करनी मुझे,कर न पंखुड़ी बंद।।
पीकर मधु मकरंद को, भरती गगन उड़ान।
मधुमक्खी पहुँची वहाँ,छत्ता सघन सुभान।।
🪴 एक में सब 🪴
सारस्वत कविता कभी,
निष्फल क्यों हो मीत !
'शुभम'-काव्य मकरंद है,
नहीं प्रदर्शन - रीत।।
सुभान= (अरबी शब्द) पवित्र ,महान ,वाह वाह!
🪴 शुभमस्तु !
०८.१२.२०२१◆९.३०आरोहणं मार्तण्डस्य।
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