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✍️ शब्दकार ©
🎻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शब्द- साधना कवि करता है,
भाव,शिल्प के रँग भरता है,
खेल नहीं है यह शिशुओं का,
डूब-डूब कर वह तरता है।1।
शब्द अजर है सदा अमर है,
साधक उससे जाता तर है,
शब्दों में ही बसे अमिय विष,
कवि का हृदय शब्द का घर है।2।
मधुर जहर- से शब्द न बोलें,
बोलें बाद प्रथम वह तोलें,
सत्य वचन में रहते ईश्वर,
सत्य मधुरता से रस घोलें।3।
शब्दों की सरिता नित बहती,
दस रस की कविता कुछ कहती,
चिंतन, मनन, मधुर मंथन से,
उर के मैल मिटाती दहती ।4।
शब्द इत्र है शब्द मंत्र है,
जीवन संचालक सु यंत्र है,
मारण, उच्चाट्टन , जीवनप्रद,
देशभक्ति का नवल तंत्र है।5।
🪴 शुभमस्तु ।
०१.१२.२०२१◆१०.१५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
🪴 शुभमस्तु !
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