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✍️ शब्दकार ©
🛤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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जीवन प्रथम वरीय है, नहीं जीविका मीत।
चलें छोड़कर जीविका,तब ही अपनी जीत।
नंगे पैरों चल पड़े ,श्रमिक न देखी बाट।
पटरी पकड़ी रेल की, जाते निज घर घाट।।
बाँधा थैला पीठ पर, जो जा पाए साथ।
नहीं भरोसे औऱ के, चलते जाते पाथ।।
कोरोना का भय बड़ा,मिले न कोई काम।
कब तक यों बैठे रहें,होती यों ही शाम।।
भय का ये आतंक है,बड़ी न इतनी मीच।
अब पछताना शेष है,फँसे कीच के बीच।।
अपना घर उत्तम भला, नहीं भला परदेश।
आए क्यों घर छोड़कर,खींच रहे निज केश।
बालक पत्नी सोचते, कहाँ फँसे हम आज।
रोटी तक मिलती नहीं,कैसा धंधा - काज।।
🪴 शुभमस्तु!
२१.१२.२०२१◆८.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।
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