शनिवार, 11 दिसंबर 2021

धूप को ज़ुकाम 🌆 [ बाल कविता ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🌆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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हुआ    धूप     को    तेज जुकाम।

नाक     टपकती      प्रातः  शाम।।


छिपता   सूरज    गुम   हो  जाती।

भोर      हुई     आती   शरमाती।।


ओढ़      रखी   कुहरे    की चादर।

बादल  से    लगता    भारी  डर।।


पेड़ों   से   जल   टप  - टप  बरसे।

धूप        सेंकने        छाया  तरसे।।


डर- डर  कर   तितली   है आती।

बैठ  सुमन   पर   झट  उड़ जाती।।


दादी        बैठी      ओढ़    रजाई।

दही      बिलोतीं     अम्मा   ताई।।


धूप      कुनकुनी     सबको भाती।

पिलिया     उछले      कूद लगाती।।


भूसे  में       छिप    बिल्ली ब्याई।

करते     बच्चे     म्याऊँ   -  म्याई।।


बतखें,     मुर्गी,       मुर्गे     धाए।

भोजन     कचरे    में  वे  पाए।।


धूप  जगी    उठ    दुनिया  जागी।

'शुभम '    अलसता   पूरी  भागी।।


🪴 शुभमस्तु !


११.१२.२०२१◆८.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।

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