मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

गाँव 🌾🏕️ [ मुक्तक ]

  

◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆●◆◆◆●◆◆◆●◆●◆●◆●◆●

खेत,  बाग, वन   की   हरियाली,

वृक्ष, लता   की   छटा  निराली,

सुषमा   सुघर गाँव   की प्यारी,

खेलें   बालक     दे -  दे   ताली।१.


गेहूँ,     चना,      धान   लहराते,

देख   नयन  सबके    सुख पाते,

कृषक  गाँव  की   जीवन -धारा,

हिल- मिल  गीत   हर्ष   के गाते।२.


लिपे - पुते      गोबर  -  माटी से,

आँगन   सज्जित     परिपाटी से,

होली     पर्व     दिवाली    आती,

हर्षित   गाँव   दाल - बाटी से।३.


 बरसें     घन   घनघोर   गगन से,

दिखते  हैं  सब   गाँव  मगन - से,

कृषक   सभी    जुटते    खेती में,

हो  जाते  सब   व्यस्त  लगन से।४.


बेला,      जूही ,     गेंदा     फूले,

कर   गुंजार  भ्रमर -  दल  झूले,

तितली     उड़ती    रंग -  बिरंगी ,

गाँव  महकते   ज्यों   मद भूले।५.


दूध,  शाक -  सब्जी ,  फल  पाते,

अन्न,   सुमन   सब   गाँव दिलाते,

प्राकृतिक     जीवन     की सुषमा ,

नर - नारी ,   शिशु ,   युवा बढ़ाते।६.


है     परिवेश    गाँव   का न्यारा,

कहीं   नदी   का   सजल किनारा,

पेड़ों  पर   कलरव   खगदल का,

लुभा   'शुभम'  को  लगता प्यारा।७.


🪴 शुभमस्तु !


२८.१२.२०२१◆६.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...