◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●
✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆●◆◆◆●◆◆◆●◆●◆●◆●◆●
खेत, बाग, वन की हरियाली,
वृक्ष, लता की छटा निराली,
सुषमा सुघर गाँव की प्यारी,
खेलें बालक दे - दे ताली।१.
गेहूँ, चना, धान लहराते,
देख नयन सबके सुख पाते,
कृषक गाँव की जीवन -धारा,
हिल- मिल गीत हर्ष के गाते।२.
लिपे - पुते गोबर - माटी से,
आँगन सज्जित परिपाटी से,
होली पर्व दिवाली आती,
हर्षित गाँव दाल - बाटी से।३.
बरसें घन घनघोर गगन से,
दिखते हैं सब गाँव मगन - से,
कृषक सभी जुटते खेती में,
हो जाते सब व्यस्त लगन से।४.
बेला, जूही , गेंदा फूले,
कर गुंजार भ्रमर - दल झूले,
तितली उड़ती रंग - बिरंगी ,
गाँव महकते ज्यों मद भूले।५.
दूध, शाक - सब्जी , फल पाते,
अन्न, सुमन सब गाँव दिलाते,
प्राकृतिक जीवन की सुषमा ,
नर - नारी , शिशु , युवा बढ़ाते।६.
है परिवेश गाँव का न्यारा,
कहीं नदी का सजल किनारा,
पेड़ों पर कलरव खगदल का,
लुभा 'शुभम' को लगता प्यारा।७.
🪴 शुभमस्तु !
२८.१२.२०२१◆६.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें