मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

सजल 🌅

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

समांत:आने।

पदांत:लगे।

मात्राभार:20.

मात्रा पतन: *.

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार©

🌅 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

नित्य प्रति व्याधजी गाँव आने लगे

दौने   भर -भर   काजू  लुटाने लगे


मुर्गियाँ  तेज  मुर्गे   चले    झुंड में

दौड़ते -  झूमते   भोज   खाने लगे


भीड़  देखो  लगी  खेत,  मैदान  में

मतमंगे    प्रजा   को   रिझाने लगे *


देखा  नहीं    है    गाँव - गोरू कहाँ *

आज चारा  उन्हीं को खिलाने लगे


आँख से आँख जो तब मिलाते न थे

'शुभम' देख  हमको मुस्कराने  लगे


🪴 शुभमस्तु !


१३.१२.२०२१◆६.१५आरोहणं मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...