(आनंद,रंग,विचार,हृदय,फल)
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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🦋 सब में एक 🦋
शब्दों में अभिव्यक्ति का,नहीं विषय आनंद।
आत्मतृप्ति कहते'शुभं',सुमन सृजित मकरंद
जो अनुभव मन ने किया, साधन मेरी देह।
प्रणय -दत्त आनंद जो,कहलाता है नेह।।
भावों के बहु रंग हैं, पल-पल बदले रूप।
उर से रिसता नित्य जल,रस अनुरंजित कूप।
कभी क्रोध का भाव है,कभी प्रेम का रंग।
उठती हैं उर-सिंधु में,लहरें करतीं जंग।।
धी विचार की दायिनी,बदले मनुज अनंत।
नर-नारी बालक युवा,प्रौढ़ वृद्ध या संत।।
सत विचार से बुद्धि का,होता सतत विकास
दूषित मन मैला करे,होता जन उपहास।।
पंप नहीं मानव हृदय,भरता भाव अपार।
पुष्प सदृश कोमल कभी,कभी शूल असिधार
संत- हृदय नवनीत-सा,कंत हृदय रसलीन।
गति पाता कोई नहीं,नित मम हृदय नवीन।।
कर्म-वृक्ष की शाख पर,नित लगते फल तीन
सत, रज, तम के रूप में,पाते मनुज प्रवीन
ऋतु आने पर वृक्ष में,आते हैं फल मीत।
समय पूर्व मत आस कर,सोच न वर्षा शीत।
🦋 एक में सब 🦋
फल का नहीं विचार कर,
होगा धूमिल रंग।
उगा हृदय आंनद नर,
'शुभम' नहीं हो तंग।
🪴 शुभमस्तु !
१६.१२.२०२१◆२.००
पतनम मार्तण्डस्य।
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