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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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राम नाम की महिमा न्यारी।
जपते प्रतिपल शिव त्रिपुरारी।
रामचरित का तेज अगाधा।
घर ,वन , रण में पूरा साधा।।
माने वचन मातु कैकैया।
सँग वनवासी लक्ष्मण भैया।।
सीता संग गईं वन माँहीं।
बैठीं सघन वृक्ष की छाँहीं।।
सुत आदर्श राम जग जाना।
तज वनवास न वापस आना।
रजक शब्द सुन प्रभु अकुताये
सीता तजने लखन पठाये।।
सिंहासन तज वन-वन डोले।
वनवासी सँग मधुरिम बोले।।
सच्चे नित सेवक हनुमंता।
भजेंअहर्निश ऋषि मुनि संता
नर निषाद के उर को जीता।
नहीं रखा प्रभु ने कर रीता।।
तजी नहीं रण में मर्यादा।
खा फल -फूल रहे वन सादा।
तरी अहल्या वन की नारी।
मर्यादा की महिमा सारी।।
खग जटायु की सेवा भारी।
श्रीराम निज विरुद संभारी।।
रामचंद्र की महिमा जानें।
इष्टदेव निज प्रभु को मानें।।
'शुभम' सीख मानवता पाएँ।
मर्यादा प्रभु के गुण गाएँ।।
🪴 शुभमस्तु !
१३.१२.२०२१◆९.१५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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