रविवार, 19 दिसंबर 2021

तत्त्वों का मोल 🏞️ [ गीत ]

  

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✍️ शब्दकार ©

🏞️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मोल  नहीं   तत्त्वों  का  जाने।

लगते हैं  फिर जन पछताने।।


जन्मकाल  में   गोद  उठाया।

रहे अनाहत   हमें    बचाया।।

धरती का उपकार न माने।

मोल नहीं  तत्त्वों  का  जाने।।


अन्न, शाक, फल  देती धरती।

वसन प्रदान किए तन ढँकती।

गड्ढे  खोद    लगे  दुख   ढाने।

मोल नहीं   तत्त्वों  का जाने।।


पानी ही जीवन कहलाता।

हरा -भरा  पादप  हो जाता।।

लगता  बादल जल  बरसाने।

मोल नहीं  तत्त्वों का  जाने।।


जीव -जंतु  मानव  तरु सारे।

सब पानी  के   सदा  सहारे।।

गाते  सरिता,   सागर   गाने।

मोल नहीं  तत्त्वों  का जाने।।


पावक ताप नित्य देता है।

शीत  देह  का  हर  लेता  है।।

करता एक  न  कभी  बहाने।

मोल नहीं तत्त्वों  का  जाने।।


जठरानल से  भोजन पचता।

अंग-अंग में नवरस  सजता।।

देते  दीपक   ज्योति - तराने।

मोल नहीं   तत्त्वों  का जाने।।


नील गगन  का संबल अपना।

दिन में जागें निशि सो सपना।

सूरज -  चाँद   बदलते   बाने।

मोल  नहीं  तत्त्वों  का जाने।।


नभ में बादल  जल  बरसाते।

जीव-जंतु ,भू  सभी रिझाते।।

नभ को कौन नहीं पहचाने

मोल   नहीं  तत्त्वों का जाने।।


पवन देव से स्वत्व हमारा।

पाता है  जीवन  जग  सारा।।

बिना वायु क्या प्राण सुखाने?

मोल   नहीं  तत्त्वों का जाने।।


नहीं चले  वाहन  का पहिया।

करें हवा   बिन  दैया -  दैया।।

'शुभम'लगा उनको समझाने। 

मोल  नहीं तत्त्वों  का जाने।।


🪴 शुभमस्तु !


१८.१२.२०२१◆१०.१५आरोहणं मार्तण्डस्य।

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