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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मूँगफली की नाक पर,जब हो नर्म प्रहार।
बाहर दाने झाँकते, खुल जाता है द्वार।।
नीबू नारंगी सदा, देते रस भरपूर,
पड़ता मंजु दबाव जो,वैसी कामिनि नार।
फूल - फूल भौंरा गया,पाने मधु मकरंद,
जब होती रस-कामना,लगे न श्रम भी भार।
बाहर आना चाहता, गर्भान्तर से भ्रूण,
सश्रम निज संघर्ष से, पाता नई बहार।
बिना कर्म रस-कामना, करते हैं नर - मूढ़,
श्रम ही जीवन मूल है,श्रम सुख का आधार।
रुकते कभी न भानु शशि, धरती है गतिवान
अनल व्याप्त हर बिंदु में,चलते व्योम बयार।
सरिता सागर में बहे,ज्यों निर्मल सद नीर,
'शुभं'मरण गतिहीनता,श्रमजल सदा सकार।
🪴 शुभमस्तु !
२०.१२.२०२१◆३.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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