सोमवार, 20 दिसंबर 2021

रस -कामना 🌳 [ दोहा - गीतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मूँगफली  की नाक पर,जब हो नर्म  प्रहार।

बाहर दाने झाँकते, खुल जाता  है   द्वार।।


नीबू   नारंगी    सदा,  देते   रस    भरपूर,

पड़ता मंजु दबाव जो,वैसी कामिनि  नार।


फूल - फूल  भौंरा  गया,पाने मधु    मकरंद,

जब होती रस-कामना,लगे न श्रम भी भार।


बाहर  आना  चाहता, गर्भान्तर   से   भ्रूण,

सश्रम  निज  संघर्ष  से,  पाता नई    बहार।


बिना कर्म  रस-कामना, करते हैं  नर - मूढ़,

श्रम ही जीवन मूल है,श्रम सुख का आधार।


रुकते कभी न भानु शशि, धरती है गतिवान

अनल व्याप्त हर बिंदु में,चलते व्योम बयार।


सरिता सागर में बहे,ज्यों निर्मल सद  नीर,

'शुभं'मरण गतिहीनता,श्रमजल सदा सकार।


🪴 शुभमस्तु !


२०.१२.२०२१◆३.३० पतनम मार्तण्डस्य।

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