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✍️ शब्दकार ©
⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कितनी भी बाधाएँ आएँ,
लक्ष्य - बिंदु तक जाना है।
मन में अपने करें प्रतिज्ञा,
मंजिल को ही पाना है।।
शुभ कर्मों को करने में नित,
बाधाएँ भी आती हैं।
इसकी भी पहचान करें हम,
छिपे मीत में घाती हैं।।
जनहितकारी शुभ कर्मों में,
शुभ साधन अपनाना है।
कितनी भी बाधाएँ आएँ,
लक्ष्य - बिंदु तक जाना है।।
विपदा पड़ी राम पर भारी,
हरण हुआ माँ सीता का।
भालू, वानर साथ ले लिए,
मिटा दुःख परिणीता का।।
नीति-नियम को त्याग कर्म से
हमें न बाहर जाना है।
कितनी भी बाधाएँ आएँ,
लक्ष्य - बिंदु तक जाना है।।
तरकस में हों बाण तुम्हारे,
पर परहंता बनें नहीं।
अपनी रक्षा में उपयोगी,
सदा बनाए मनुज यहीं।।
जीवन की बगिया महकाएँ,
हर गीत नेह का गाना है।
कितनी भी बाधाएँ आएँ,
लक्ष्य - बिंदु तक जाना है।।
स्वयं आचरण चाहें जैसा,
उससे भी उत्तम करना।
सत पथ से मत डिगना साथी,
यद्यपि पड़े तुम्हें मरना।
छेद न करना उन पात्रों में,
जिनमें खाया , खाना है।
कितनी भी बाधाएँ आएँ,
लक्ष्य - बिंदु तक जाना है।।
संघर्षों को कहते जीवन,
उनसे क्यों घबराएँ हम?
उलझी बाधाओं को सुलझें,
जीवन होगा सफल 'शुभम'।।
सदा सादगी सुखकारी है,
नहीं बनावट लाना है।
कितनी भी बाधाएँ आएँ,
लक्ष्य - बिंदु तक जाना है।।
🪴 शुभमस्तु !
२३.१२.२०२१◆११.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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