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✍️ शब्दकार ©
👑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बीतौ सन इक्कीस कौ,आयौ शुभ बाईस।
प्रभु सबकौ मंगल करें, मिटे हृदय की टीस।।
दो सालनि तें करि रहौ, कोरोना जन मार।
सन बाइस में मति करै, जगती में संहार।।
सबई जन नीरोग हों,हों समृद्ध खुशहाल।
करचोरी जो जन करें,तिनकौ नसै बबाल।।
कर - चोरनु की गोद में, झूलें नेता रोज।
दूध पिला मोटे करें, मालपुआ कौ भोज।।
चुसनी नेता -मुख सजी,मस्त मिलावटखोर।
रिश्वत देवी की कृपा, चोरनु की शुभ भोर।।
जगत-गुरू यों ही नहीं,अपनौ भारत देश।
छिनरे,चोर,लबार सब,बदलें अपने वेश।।
बनी विदेशी वस्तु पर,लिखते अपनौ नाम।
बनों स्वदेशी छिनक में,जगत गुरू कौ काम।
माल बनों परदेश में,ठोंकी अपनी सील।
गुरु ऐसे मिलते यहीं, लगै न देशी कील।।
राम श्याम के देश में,मिलते नटवरलाल।
अमरीका जापान में, ऐसौ नहीं कमाल।।
कितनों जिम्मेदार है, कोरोना - आतंक।
बिना पढ़े उत्तीर्ण कर,दिलवावै बहु अंक।।
तालाबनु में मिलि रही,नित विकास की गंग।
मुर्दे,पशु शव ही भरे,भंग देह के अंग।।
🪴 शुभमस्तु !
२६.१२.२०२१◆१०.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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